December 1, 2015

टीचर फटीचर पार्ट 2


फटीचर टीचरों के हाथों मार खा-खा कर हम बच्चे इतने अभ्यस्त हो चुके थे कि हमें लगता था यही हमारी नियति है और सारे संसार के स्कूलों में भी बच्चों की इसी तरह पिटाई होती है..लेकिन कभी-कभार हमारी पुकार भी ऊपरवाले के कानों तक पहुँच जाती थी..हुआ यूँ कि हमारा संस्कृत टीचर( जिसका ज़िक्र मैं ‘टीचर फटीचर पार्ट 1’ में कर चुका हूँ) हमें पीट पीट कर इतना आनंद प्राप्त करने लगा था कि वो रोज़ाना क्लास में आते ही कुछ बच्चों को खड़ा कर लेता और अपने चिर परिचित घिनौने अंदाज़ में पहले बुरी तरह से हमारे कान मरोड़ता और फिर दोनों हाथों से हमारे दोनों गाल बजा देता और उसके बाद पढ़ाना शुरू करता..(वो शाष्त्री मास्टर अपनी इस पिटाई को परसाद देना बोलता था) अब पेट भर परसाद खाने के बाद हमारे पास और कुछ ज्ञान ग्रहण करने की शक्ति ना बचती..सो हम मन ही मन मास्टर जी के जल्दी मर जाने की कामना करते हुए गुमसुम से क्लास में बैठे रहते..

ये सब कुछ बदस्तूर चल रहा था और हम बच्चे दिन प्रतिदिन और अधिक गुमसुम होते जा रहे थे कि एक दिन पिताजी ने मेरा गुमसुम होना नोटिस किया और उसका कारण पूछा..यहाँ मैं बता देना चाहता हूँ कि मेरे पिताजी भी एक टीचर थे और संयोग से उसी स्कूल में गणित पढ़ाते थे..पर वो उतने जल्लाद और sadist टाइप के नहीं थे..हालाँकि उन्हें भी टयूशन पढ़ा कर अधिक पैसे कमाने की चाह थी लेकिन साथ ही साथ उन्हें ये डर भी लगता था की कहीं उनकी पिटाई से किसी बच्चे को कोई गंभीर चोट पहुँच गई तो फिर लेने के देने पड़ जायेंगे..उनके इस डर को दुसरे मास्टर उनकी कमज़ोरी कहते थे और ये मानते थे कि उनकी इस कमज़ोरी की वजह उनका जात से बनिया होना है..और अगर वो बनिए ना होकर जाट,पंजाबी,पंडित या सरदार होते तो बच्चों को वैसे ही धुनते जैसे बाकी मास्टर धुनते थे
 
बहरहाल मैंने रो रो कर पिताजी को अपना और दुसरे बच्चों की बुरी हालत का हाल बयान किया..और बताया कि शाष्त्री मास्टर किस तरह हमें क्लास शुरू होने से पहले पिटाई-परसाद खिलाता है..ज़ाहिर है पिताजी को बहुत गुस्सा आया और अगले ही दिन वो हमारी संस्कृत की क्लास में पहुँच गए..वहाँ उन्होंने कड़े शब्दों में शाष्त्री मास्टर को समझाया कि आज के बाद मेरे बच्चे को हाथ लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है..लेकिन शाष्त्री मास्टर भी घाघ था..वो पैंतरा लेते हुए बोला कि ये सब छोटी मोटी पिटाई तो मैं पढ़ाई के लिए करता हूँ..लेकिन अगर आपको अपने बच्चे को संस्कृत नहीं सिखानी तो ठीक है..मैं आज के बाद उसको कुछ नहीं कहूँगा..ये सुन कर पिताजी का कॉन्फिडेंस डगमगा गया और उन्होंने सवालिया निगाहों से मेरी तरफ देखा..पर मैंने ज़िन्दगी की सारी हिम्मत जुटा के कहा कि चाहे संस्कृत आये न आये..पर मुझे अब और मार नहीं खानी..शाष्त्री ने खा जाने वाली नज़रों से मुझे देखा..पर मैं अपनी बात पे कायम रहा और मेरी हिम्मत ने मुझे बचा लिया..

उस दिन के बाद शाष्त्री ने मुझे पूरी तरह से अनदेखा कर दिया..उसके लिए मैं क्लास में होते हुए भी वहाँ नहीं होता था..पर मुझे शाष्त्री की ये अनदेखी भा रही थी..मैं पिटाई से बच गया था और मज़े की बात ये कि पहले जो संस्कृत मुझे लाख समझाने पे समझ नहीं आ रही थी..वही संस्कृत अब मेरी दोस्त बन रही थी..

- to be continued...