April 4, 2014

एक वरदान - अश्वनी


लम्बी उम्र की कामनाओं के बीच 
कुछ समय के लिए 
मर जाने का वरदान
मांग लूँ 
अगर कोई भगवान 
हो जाए मेहरबान 

लगातार दौड़ते दिमागी घोड़ों की 
तोड़ दूँ टांगें
लपर झपर ज़बान के 
पर दूँ क़तर 
बढ़ते कदम थाम 
हर प्रयास को दूँ आराम
बेकाम हो मेरा काम 
अनाम हो मेरा नाम

हर रोज़ की जीवन दुपहरी में
हर रोज़ मनाऊं शाम

3 comments:

  1. वाह! क्या बात है मलंग बाश्शाह ।

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  2. बहुत ही सुन्दर लिखा है.. बधाई..

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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