November 24, 2012

रोशनी के साथ जादू की झप्पी-अश्वनी


सूरजमुखी का फूल याद आते ही आंखों के सामने आ जाता है एक हंसता-खिलखिलाता चेहरा... आपने कभी ध्यान से सूरजमुखी को देखा है? ऐसा लगता है जैसे एक बड़ा-सा चेहरा चौड़ी मुस्कान लिए लहलहा रहा हो। कितना ख़ूबसूरत और असंख्य गुणों से भरपूर है सूरजमुखी! गंधरहित होकर भी अपने गुणों की सुगंध हर ओर फैलाता है। एक ऐसा फूल जो सूरज की पहली किरण को अपने भीतर संजो लेने के लिए उसकी ओर टकटकी लगाए बैठा रहता है, और फिर दिन भर जिधर सूरज घूमे उधर घूमता रहता है। सूरज छिप जाने के बाद अपनी पंखुड़ियों को समेटकर किसी साधु की तरह समाधि में चला जाता है।
सूर्य की किरणें इस प्राणी-जगत में एक नई ऊर्जा, एक नई रोशनी, एक नई सुबह का आग़ाज़ करती हैं, और सूरजमुखी इस बात की गवाही देता नज़र आता है कि प्रकृति तो भरपूर दे रही है, लेकिन ज़रूरत है बस उसकी तरफ नज़र घुमाने की। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो जीवन की एक बड़ी सीख देता लगता है सूरजमुखी। अक़्सर सुख और शांति हमारे इर्द-गिर्द ही होते हैं, लेकिन हम जीवन भर उसकी तरफ पीठ किए पड़े रहते हैं। जाने-अनजाने रोशनी को छोड़ अंधेरों की तरफ रुझान हो जाता है। ऐसे में सूरजमुखी को याद करें तो अंधरे से उजाले की ओर जाने का मन करेगा।
जब छोटा था तो छोटे शहर में रहता था। छोटे-से घर के बाहर बड़ी-सी कच्ची जगह होती थी। अभी बड़ा होकर बड़े शहर में हूं। छोटे-से घर के बाहर वाली कच्ची जगह का नामो-निशान नहीं है यहां। पर अभी भी बचपन के घर का वो बगीचा याद आता है जिसमें पिता जी ने एक दिन कहीं से सूरजमुखी के बीज लाकर बो दिए थे। कुछ दिन में वो बीज नन्हे पौधे बन गए और फिर वो पौधे बड़े होते गए। एक दिन उनका कद मुझसे भी बड़ा हो गया। मैंने उनका बढ़ना देखा था। वो मुझसे ऊंचे हो गए थे, पर वो मेरे दोस्त थे। अपने फूल मेरी तरफ झुकाते तो लगता कि मुझसे हैलो कर रहे हों। मैं दिन में कई-कई बार उनको देखने आता। हर बार यह पक्का करता कि उन्होंने सूरज की तरफ अपना मुंह मोड़ा हुआ है या नहीं... और उन्होंने मुझे कभी निराश नहीं किया। वो हर बार अपने नाम और ख्याति को सार्थक करते दिखते। जब वो थोड़े और बड़े हुए, पूरी तरह परिपक्व हो गए तो पिता जी ने उनके कुछ बीज निकालकर मुझे दिए। मैंने उन्हें छीला और मुंह में रख लिया। मुंह में जैसे रोशनी-सी घुल गई। वो स्वाद आज भी भुलाए नहीं भूलता। लेकिन आज मेरे पास चाहकर भी मेरे वो दोस्त नहीं हैं जिनसे मैं वो खाने के बीज मांग सकूं। आज सूरजमुखी के बारे में लिखते हुए मैं सोच रहा हूं कि मेरे घर में जो सूरजमुखी का तेल इस्तेमाल होता है, उसका कारण सूरजमुखी के गुण हैं या उनसे मेरी बचपन की दोस्ती... या शायद दोनों ही!
सूरजमुखी के खेत में जाएं तो लगता है कि कई नन्हे-नन्हे सूरज धरती पर खिल आए हैं। किसी उदास मन को कुछ देर सूरजमुखी के सान्निध्य में छोड़ दीजिए तो वही उदास मन हिलोरे लेने लगता है। इसके बीज ऐसे लगते हैं मानो इसकी आंखें हैं जो बड़ी मासूमियत से सुबह खुलती हैं... और इसका फूल ऐसे लगता है जैसे सूरज से कह रहा हो कि हे सूरज! ऐसे ही चमकते रहना। ऐसे ही अपनी प्राणवान शक्ति को जन-जन तक पहुंचाते रहना। मैं तुमसे यह वादा करता हूं कि हर कदम तुम्हारे साथ चलूंगा। तुम्हारी रोशनी का अनुगमन करूंगा। तुम्हारे नाम से नाम पाया मैं सूरजमुखी हरसंभव कोशिश करूंगा कि मैं भी तुम्हारी तरह निराश, उदास दिलों में नवजीवन का एक छोटा-सा सूरज बनकर चमकता रहूं।’ 

(दैनिक भास्कर समूह की पत्रिका 'अहा ज़िंदगी' के सितम्बर 2012 अंक में प्रकाशित)