May 2, 2012

बिना यादों के - अश्वनी

यादों ने जब सताया 
यंत्रणा की हद तक
मैंने मांगी मन्नत
ख़तम हो यादें
पाताल में जाए यादों का सिलसिला
मन्नत हुई पूरी
एक सुबह जब जागा तो 
खुद को यादों से तन्हा पाया
दोपहर तक खुश रहा
शाम होते बेचैनी शुरू हुई
रात में बेचैनी तकलीफ बन गई
करवट में गई रात
सुबह मनहूस लगी
याद थी तो परेशान करती थी
नहीं है तो बर्बाद कर रही थी 
फिर उठे हाथ मन्नत को
याद रहने दे बाकी 
चाहे तो मिटा दे मुझको
पाताल में डाल मेरी हस्ती
पर मेरी यादें रखना जिंदा

यादों के बिना 
मिटा ही तो पड़ा था  
हस्ती भी कहाँ थी मेरी 
बिना यादों के

2 comments:

  1. nice..............
    a real poetry,i must say....
    :-)

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  2. यादों के बिना ...
    नहीं नहीं ...

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