April 8, 2012

सोच का चक्का जाम - अश्वनी

झिलमिल तस्वीर दिखे जब साफ़ आँखों से
तब ख़लल दिमाग का है दोषी
दिमाग में घूमता इक सर्प
कुंडली मारे लपेटता है मगज़
स्पष्ट को करता धुंधला
धुंधले को करता और धुंधला


फिल्टर से छाना पानी

आत्मा कैसे छानूं?
साबुन से धोए हाथ
लहू कैसे धोऊँ?
डस्टर से झाड़ा बिस्तर
गिल्ट कैसे झाडूं?

ढक लिया तन
कैसे ढकूँ मन?
बुझा दी बत्ती
डर कैसे बुझाऊं?
पानी से साफ़ किया चेहरा
अक्स कैसे साफ़ करूँ?
सुला दिया जिस्म
विचार कैसे सुलाऊं?

बंद की आँख 
खिड़की कैसे बंद करूँ?
तोड़ दिया गिलास 
बोतल कैसे तोडूँ?
काट दी जीभ
आवाज़ कैसे काटूँ?
खाली किया जाम
सागर कैसे पीऊँ?
बीवी को मना लिया 
बच्चे को कैसे मनाऊँ?
बच्चे को मना लिया
बीवी को कैसे मनाऊँ?

जला दी किताब
कविता कैसे जलाऊं?

4 comments:

  1. जलनी भी नहीं चाहिए और बचनी भी चाहिए.. बहुत ही सुन्दर और सारगर्भीत..

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  2. बाप रे!!!!!!!!!!!!!

    पढ़ ली हर लाइन...................
    कविता कैसे पढूं???????????????????????????????

    :-/

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  3. बाप रे!!!!!!!!!!!!!

    पढ़ ली हर लाइन...................
    कविता कैसे पढूं????????????

    :-/

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    1. hahahha..matlab isme koi kavita hi nahi hai?sahi hai..wo bhi jal gai lagta hai kitaab ke saath saath..

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