March 24, 2012

बहरूपिया -अश्वनी

मेरा मेरा मेरा 
इतना मेरा है ज़िन्दगी में 
कुछ और सुझाई नहीं देता
कुछ और दिखाई नहीं देता

कभी देखे जो तेरा इसका उसका 
उस दृष्टि पर उतर आया है मोतिया 
उस दिल में हो गई है ब्लोकेज 
धमनियों में जम गया है कचरा
जिस्म हुआ नाकारा
आत्मा पे छा गई है मौत

मैं तो चाहता था सबका भला
फिर कैसे हुआ इतना स्वार्थी
कहाँ से आया इतना मेरा मेरा मेरा

या तो दुबारा से शुरू हो सब
या मैं स्वीकार कर लूं वस्तुस्थिति
या मैं खोज पाऊं स्वार्थ का उदगम
या मैं बन जाऊं लठ यानि पीस ऑफ़ वुड

जो भीगता हो बारिश में
सूखता हो धूप में
टूटता हो कुल्हाड़ी से
जलता हो आग में
तड़क तड़क 
पर
चुपचाप
स्पन्दनहीन

या खुदा...
या तो चैन दे
नहीं तो उतर आ ज़मीं पर
और भोग मुझ सा जीवन
कहलाना बंद कर खुदा 
और जूझ 'मेरे' सवालों से
 
आह्ह्ह....तू नहीं है खुदा
जा माफ़ किया तुझे बहरूपिए

4 comments:

  1. 15मिनिट से सोच में हूँ कि क्या कमेन्ट करूँ.....

    so for a change,
    no comments.....

    may GOD bless you!!!!

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  2. hmm ... achha hua khuda zamin par utar kar nahi aaye ... na jaane kitne hi aap aur hum jaison ke sawaalon ke teer sehne padte ,,, :) .. sach mein behrupiya hai wo .. :)

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