February 25, 2012

चाहत - अश्वनी

मिटना नसीब था
तुझपे मर मिटे

खुद को पाना था

तुझमें खो गए

इज़हारे मोहब्बत था

ज़ुबान खामोश रही

तू साया बन साथ थी

मैं अंधेरों में था
साया दिखा नहीं
महसूस हुआ

जब तूने बहुत देर थामे रखा हाथ

लकीरें बदलने लगीं
'अकेलेपन' की जगह
तेरा नाम उभर आया

तूने इतने समर्पण से मुझे चाहा

मुझे मोहब्बत पे यकीन होने लगा
तूने मुझे देखा 'उस' नज़र से
मुझे खुद पे यकीन होने लगा

जब तू आई जीवन में

मैंने एक बड़ा छाता खरीदा
अब से पहले एक छोटी छतरी बारिश के लिए थी

तेरे आने से

मैंने पहली बार जानी बहुत सी बातें
मैंने जाना कि
मैं खुद से ज़्यादा भी चाह सकता हूँ किसी को
खुद से ज़्यादा तुम पर भरोसा करता हूँ

तेरे आने से

बारिश,हवा,पहाड़,बादल,चाँद,घाटी,वादी,झरना,जंगल
जैसे शब्द
परिभाषित हुए

अब तुम अपना ज़्यादातर वक़्त मेरे संग बिताती हो

बंद आँखों से भी दिख जाती हो
आँखें खोलूँ
तब भी रहना सामने
हमेशा

February 23, 2012

साली ख़ुशी - अश्वनी

जब मुझे मेरे भीतर के भाव समझ नहीं आते
वो समय बहुत कठिन गुज़रता है मुझ पर...

जिसे मैं ग़ुस्सा समझ पी जाता हूँ
उसका स्वाद निराशा सा निकलता है
जिसे मैं निराशा समझ झटक देता हूँ
वो दरअसल कोई दबी कुंठा होती है
या मेरा इन्फीरीऑरिटी काम्प्लेक्स
जो कूबड़ की तरह लदा रहता है पीठ पर
कूबड़ को कोई झटक पाया है आज तक

जिसे मैं ख़ुशी मान झूमता हूँ
वो अक्सर शराब का नशा होता है
पैर थिरकते हैं
चेहरा मुस्कुराता है
दिल एब्सेंट माइंडेड सा डोलता है इधर उधर
दिल शरीक ना हो तो वो ख़ुशी हुई क्या

जिसे मैं अवसाद यानी डिप्रेशन मान दिनों-दिन पड़ा रहता हूँ बिस्तर में
वो किसी की याद निकलती है
अवसाद का रूप बना कर मुझे छलने आई छलना
मेरा सब कुछ लूट ले जाती है लुटेरी
ऐसी याद से तो मेमोरी लॉस भला

जिसे मैं चिंतन समझ के डूबा रहता हूँ सोच में
वो अक्सर होता है मेरा पलायन
सब से कट के अकेले में मुस्कराहट रहती है लबों पर
कभी कोई नगमा भी गुनगुनाने लगता हूँ मैं
दिल दोस्त सा साथ रहता है उन लम्हों
मेरा चिंतन पलायन असल में वेश बदल के आई ख़ुशी है
मेरे लिए बेहतर है कट के रहना

ये भाव भी बड़ा भाव खाते हैं
जैसे होते हैं
वैसे दिखते नहीं
जैसे दिखते हैं
वैसे होते नहीं
पर 
सौ बातों की एक बात

ख़ुशी आती रहे
चाहे हज़ार वेश बदल
सब रूप क़बूल उसके...

February 22, 2012

सपना उर्फ़ मेरी प्रेमिका - अश्वनी

एक सपना सता रहा था मुझे
पिछले कुछ दिनों से
एक धारावाहिक के रूप में ये सपना घटित हुआ है मेरी नींदों में...
पहले दिन एक लड़की पैदा हुई कहीं

दूसरे दिन वो लड़की बड़ी हुई
तीसरे दिन वो जवान हो गयी
जवान हुई तो पता चला कि मैं इस लड़की से प्यार करता हूँ...
पर चौथे दिन वो लड़की अधेड़ हो गयी मेरे सपने में
पांचवे दिन उसको घेर लिया कई तरह की बीमारियों ने
छठे दिन वो बूढ़ी जर्ज़र हो गई
सातवें दिन वो बिस्तर से लग गई
बस....
आठवें दिन से मैंने नहीं ली है एक भी झपकी
मुझे डर है और पक्का यकीन भी है कि
इस बार के सपने में मेरी प्रेमिका ले लगी मुझसे विदा सदा के लिए....
तब से ले के अब तक कई दिन बीत चुके हैं
और मैं अनिद्रा के अनशन पर बैठा हूँ
पानी के छींटे, कॉफ़ी, और नींद भगाने  वाली दवाइयों से मैंने नींद को दूर भगाया हुआ है..
इतना कुछ आपसे बांटने के बाद मेरे कुछ सवाल हैं
क्यूँ आते हैं सपने?
क्यूँ कोई लड़की बन जाती है प्रेमिका?
क्यूँ जाते हैं लोग?
क्यूँ किसी के जाने से इतना डरता है मन?
क्यूँ इतने सवाल हैं ज़िन्दगी में?
क्यूँ कुछ लोग सोते नहीं चैन से?
और मुझे भी नहीं सोने देते चैन से?

February 19, 2012

ग़ुलाम राजा- अश्वनी

देह मानचित्र सी
अपनी अपनी जगह घेरे अंग प्रत्यंग
स्वामी दिल
प्रहरी मस्तिष्क
शिराओं सी नदियाँ जोड़ती सबको परस्पर...

कोई आके तोड़ दे ये
व्यवस्था
अस्त व्यस्त कर दे मानचित्र
झुलसा दे देह
दमका दे देह
निखरा दे देह
सुला दे प्रहरी को
नदियों को डुबो दे पाताल में
और
स्वामी को बना ले अपना ग़ुलाम....

'उसकी' ग़ुलामी में दिल बल्लियों उछलता है
अहम् टूटता है तो वहम बिखर जाता है
हर दिल की कोई एक रानी
कोई एक राजा होता है..
दिल ग़ुलामी में हरदम जवान रहता है...

'स्वामी दिल' अकेलेपन का शिकार होता है
जल्दी बुढ़ा जाता है
अहम् वहम उसको झुकने नहीं देते
तनी अकड़ी गर्दन एक दिन भरभरा के ढह जाती है...

उम्र बीतने पे आई समझ, नासमझी है
जिनके पास अभी भी वक़्त बचा है
वो मेरे अनुभव से लाभ पाएं
दिल को किसी का ग़ुलाम बनाएं
इस बाज़ी में शह से ज़्यादा मज़ा मात में आता है
हथियार उठाने से
अधिक सुखद है समर्पण
तन-ने से बेहतर है बिछ जाना
अकड़ से अच्छी है पकड़...

इसलिए यहाँ कवितायें पढ़ने में समय ना गँवा के
कविता को खोजो
या
स्वयं बन जाओ कविता...

February 18, 2012

भोला दिल - अश्वनी

घर घर जा के हिंदी साहित्य की किताबें बेचता
कंधे पे टाँगे झोला
वो भोला..
मुंबई में सिर्फ खाने और शराब की होम डिलीवरी ही नहीं होती..
एक फ़ोन पे साहित्य भी घर आता है..
10 % की छूट पे..
हर बार सोचता हूँ एक-दो से ज़्यादा किताबें नहीं लूँगा..
क्योंकि भरा है घर पहले ही अत्यधिक किताबों से..

किताब रखने की जगह नज़र ही नहीं आती..
पर हर बार भोले का झोला आधा खाली हो जाता है..
और घर में जगह निकल आती है किताबें रखने की..
दरअसल यह जगह पहले मेरे दिल में बनती है..
फिर मेरा दिल बना लेता है थोड़ी जगह घर में भी..
दिल के अनोखे तहखाने हैं
जितने खोलो
उतने बढ़ते जाते हैं..
मेरा दिल मेरी सोच समझ को चित कर देता है
हमेशा...

February 17, 2012

यात्रा पात्र - अश्वनी

पिछली 6 फरवरी से 15 तक एक यात्रा में था..
इन 10 दिनों में खूब पैदल चला..
घूमने लायक जगहों पे घूमा..
लगभग हर रोज़ सुबह जल्दी उठा..
शाम थक के मालिशें करवाई..
तरह तरह की बीअरें पी..
झींगा,केकड़ा,बड़ी छोटी मछलियाँ
और तरह तरह के मांसाहारी शाकाहारी खाने खाए..
स्वादिष्ट अनोखे फल खाए..
बकरी का बोतलबंद दूध भी पीने मिला..
कभी तीखी मिर्ची से जीभ जलाई
कभी फल मिश्रित आइसक्रीम से ठंडक पाई..
सब था पास..
पर तीसरे चौथे दिन से ही घर की दाल रोटी बेतरह याद आने लगी..
मैं थाईलैंड में था.. 

February 5, 2012

करता क्यों ना मरता ? - अश्वनी

अधमुंदी आँख
बोझिल तन
घायल मन
दिमाग चौकन्ना

कर्मठ मैं
बढ़ते कदम
सामने मंजिल
दिल उदास

भरी जेब

खनखन सिक्के
बैंक बैलेंस
हाथ खाली

भरा परिवार

होम स्वीट होम
सब सुख
सब में तन्हा

नरम बिस्तर

धुली चादर
गागर में सागर
करवट रात

प्रशंसा भरपेट

उज्जवल भविष्य
बढ़ते आलिंगन
अछूती आत्मा

बाधा दौड़

निपुण धावक
गोल्डन ट्रॉफी
पस्त विचार

छप्पन भोग

लपलप जीभ
मुंह में पानी
मरी भूख

लम्बी गाड़ी

कॉस्टली शोफर
टंकी फुल
टायर पंचर

उत्साह जीवन

आँखों सपने
रेल ज़िन्दगी 

अझेल ज़िन्दगी

बिकता लेखन

डेली सोप
जम के पैसे
कौन कविता ?

दिमाग चौकन्ना
दिल उदास हाथ खाली सब में तन्हा करवट रात अछूती आत्मा पस्त विचार मरी भूख टायर पंचर अझेल ज़िन्दगी कौन कविता?

सुसाइड नोट.......
मुंह से झाग........


नोट- ऊपर लिखी सब घटनाएं काल्पनिक हैं..इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है..यदि आपको किसी के भीतर ऐसे लक्षण दिखें..तो वो महज़ एक संयोग है..

February 4, 2012

हर बार कविता नहीं होती - अश्वनी

अभी मैं कहने जा रहा हूँ कुछ ऐसी बातें 
जो बिलकुल साधारण हैं..
ऐसी बातें हर किसी के ज़हन में आती हैं..
ऐसे शब्द..ऐसी सोच..हर किसी के पास होती है..
इसमें कुछ भी नहीं है कविता जैसा..
पर धोखे से मंच पे चढ़ आए कवि की तरह 
अपनी बात कहके ही जाऊँगा..

काम में दिन रात डूब के पार उतरना निर्वाण है..
किसी को मोहब्बत में पा जाना खुदाई है..
लम्बी दौड़ में सुस्ताना रूहानी है..
प्यास में पानी अमृत है..
भूखे को रोटी जहान है..
धूप में साया सुकून है..
ना के बाद हाँ आनंद है..
यथार्थ में सपने प्राण हैं..
जीवन बाद मौत शान्ति है..
तेरे बिना जीवन मौत है..

देखा..मैंने कहा था ना
इसमें कुछ भी नहीं है कविता जैसा...

February 1, 2012

नो कविता डे - अश्वनी

जब मैं कवितायें लिख रहा होता हूँ तो समझ जाइए 
कि मैं उन दिनों में एक भी पैसा नहीं कमा रहा हूँ..
जब कविता पास होती है तो पैसा दूर भागता है...
जब पैसा कमाता हूँ तो कविता पास नहीं आती..
हालाँकि मैं लिख के ही पैसा कमाता हूँ..
पर वो लिखना अलग होता है..
उसमे सब कुछ होता है..
पर कविता नहीं होती..
मैं आजकल फिर से पैसा कमाने के लिए लिख रहा हूँ..
और कविता दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रही..
एक ही सवाल है मेरा आजकल..
ये लक्ष्मी और सरस्वती कभी हाथ मिलायेंगी क्या??