November 21, 2010

गुर-अश्वनी

कंप्यूटर के सामने बैठ कर..
उँगलियों के पोरों से टाइप करते हुए...
आँखों से सही अक्षरों को तलाशते हुए..
और दिमाग से लगातार कुछ सोचते हुए एक्टिव रहने से भी कविता नहीं होती...
आँखें बंद करके...
उँगलियों को जेब में डाल के...
दिमाग को मेरिनेट करके रेफ्रिजरेटर में रख के...
कुछ पल दिल से अपने साथ रहो तो कविता होने लगती है...
कर के देखो...अच्छा लगता है...

November 9, 2010

यक्ष प्रश्न-अश्वनी

दम साध के बैठे रहे...कलम साध लेते
दिल थाम के बैठे रहे...हाथ थाम लेते
बहुत कहते रहे अपनी...हमारी भी सुन लेते
घात लगाए बैठे रहे... हथियार डाल देते
दौड़ते रहे सरपट...विचार कर लेते
जागते रहे आँख फाड़े...सपने देख लेते
गिनते रहे हमेशा...मुट्ठी खोल देते
बेखबर रहे बेचैन...करुणा भर लेते
खोजते रहे हमेशा...ध्यान कर लेते
संचयी कंजूस बन गए...फक्कड़ बन जाते
खुंदक पालते रहे...प्यार कर लेते
सीमाएं बनाते रहे...लांघ भी लेते
सोचते ही रह गए...कर भी लेते
आँखें मूंदे पड़े हो अब...ज़िन्दगी जी लेते।