August 7, 2010

हिसाब किताब-अश्वनी

आँखें खुली रखने कि कोशिश में बहुत देर आँखें रगड़ी तो आँखें लाल हो गयी ...
नींद से लड़ना कभी सुख देता है कभी दुःख...
रात भर जागना कभी सुकून देता है कभी बेचैनी ....
मैंने सुकून पाने के लिए बेचैनी में रात काट दी..
मैंने सुकून पाने के लिए  बेचैनी में उम्र काट दी...
मैंने दूसरों से लड़ते हुए खुद  के सामने हथियार डाल दिए...
मैं दूसरों की नज़रों में शेर रहा...अपने  सामने बिल्ली...
मैं दूसरों के सामने स्वस्थ रहा..खुद के सामने घायल...
मैं दूसरों को ज़िन्दगी समझाते समझाते खुद मौत को समझ गया...
मैं दूसरों को ज्ञान बांटते बांटते खुद रिक्त हो गया...
मैं प्यार की परिभाषा बताते बताते खुद नफरत से भर गया...
मैं दूसरों को पाते पाते खुद को खो आया...
मैं अब हिसाब किताब लगाने बैठा हूँ कि क्या खोया क्या पाया...
यह हिसाब किताब मरने तक लगे रहते हैं..
आप क्या कहते हैं..

August 5, 2010

खोखल-अश्वनी

पल-पल जमा किये मैंने...
इक दिन भरने के लिए...
दिन भरा-भरा सा ही लगा ऊपर से...
पर जब परतें उधड़ी पलों की तो हाथ आये कुछ खोखल...
पर सारे पल खोखल नहीं थे...खोखल के बीच-बीच भी था कुछ भरा-भरा...
भरे हुओं में कुछ खाली और खाली में कुछ भरे हुए रहते हैं...
मुझे लगता है ये सब आपकी मनःस्थिति पे निर्भर करता है॥
आप क्या कहते हैं..