November 21, 2010

गुर-अश्वनी

कंप्यूटर के सामने बैठ कर..
उँगलियों के पोरों से टाइप करते हुए...
आँखों से सही अक्षरों को तलाशते हुए..
और दिमाग से लगातार कुछ सोचते हुए एक्टिव रहने से भी कविता नहीं होती...
आँखें बंद करके...
उँगलियों को जेब में डाल के...
दिमाग को मेरिनेट करके रेफ्रिजरेटर में रख के...
कुछ पल दिल से अपने साथ रहो तो कविता होने लगती है...
कर के देखो...अच्छा लगता है...

November 9, 2010

यक्ष प्रश्न-अश्वनी

दम साध के बैठे रहे...कलम साध लेते
दिल थाम के बैठे रहे...हाथ थाम लेते
बहुत कहते रहे अपनी...हमारी भी सुन लेते
घात लगाए बैठे रहे... हथियार डाल देते
दौड़ते रहे सरपट...विचार कर लेते
जागते रहे आँख फाड़े...सपने देख लेते
गिनते रहे हमेशा...मुट्ठी खोल देते
बेखबर रहे बेचैन...करुणा भर लेते
खोजते रहे हमेशा...ध्यान कर लेते
संचयी कंजूस बन गए...फक्कड़ बन जाते
खुंदक पालते रहे...प्यार कर लेते
सीमाएं बनाते रहे...लांघ भी लेते
सोचते ही रह गए...कर भी लेते
आँखें मूंदे पड़े हो अब...ज़िन्दगी जी लेते।

August 7, 2010

हिसाब किताब-अश्वनी

आँखें खुली रखने कि कोशिश में बहुत देर आँखें रगड़ी तो आँखें लाल हो गयी ...
नींद से लड़ना कभी सुख देता है कभी दुःख...
रात भर जागना कभी सुकून देता है कभी बेचैनी ....
मैंने सुकून पाने के लिए बेचैनी में रात काट दी..
मैंने सुकून पाने के लिए  बेचैनी में उम्र काट दी...
मैंने दूसरों से लड़ते हुए खुद  के सामने हथियार डाल दिए...
मैं दूसरों की नज़रों में शेर रहा...अपने  सामने बिल्ली...
मैं दूसरों के सामने स्वस्थ रहा..खुद के सामने घायल...
मैं दूसरों को ज़िन्दगी समझाते समझाते खुद मौत को समझ गया...
मैं दूसरों को ज्ञान बांटते बांटते खुद रिक्त हो गया...
मैं प्यार की परिभाषा बताते बताते खुद नफरत से भर गया...
मैं दूसरों को पाते पाते खुद को खो आया...
मैं अब हिसाब किताब लगाने बैठा हूँ कि क्या खोया क्या पाया...
यह हिसाब किताब मरने तक लगे रहते हैं..
आप क्या कहते हैं..

August 5, 2010

खोखल-अश्वनी

पल-पल जमा किये मैंने...
इक दिन भरने के लिए...
दिन भरा-भरा सा ही लगा ऊपर से...
पर जब परतें उधड़ी पलों की तो हाथ आये कुछ खोखल...
पर सारे पल खोखल नहीं थे...खोखल के बीच-बीच भी था कुछ भरा-भरा...
भरे हुओं में कुछ खाली और खाली में कुछ भरे हुए रहते हैं...
मुझे लगता है ये सब आपकी मनःस्थिति पे निर्भर करता है॥
आप क्या कहते हैं..

July 4, 2010

शाम-अश्वनी



शाम इक नदी..
शाम इक समंदर....
मैं शाम में डूबा हुआ...
शाम डूबी मेरे अन्दर...


जब शाम आए, ख़ामोशी दे जाए


शाम की इंतज़ार में शाम हो गयी..पर जो शाम हाथ आई ..वो दोपहर साथ लायी

जब जम के बरसा जल......मैंने खिड़की पे शाम बिता दी...
मेरा वजूद इक रात सा...मेरी आहट सुबह हुई....मेरी महफ़िल इक दोपहर सी...मेरी तन्हाई शाम हुई॥

सुबह मेरी नींद है...रात मेरी करवट...दोपहर मेरी दुश्मन..और शाम मेरा घर॥

सुबह मिली...दोपहर खिली... रात पास बैठी रही... पर शाम खो गयी...
चैन भी मिला कभी... आराम की दो घड़ियाँ भी बिताईं... सुकून से भी बैठे रहे कुछ पल... पर नींद खो गयी।

June 5, 2010

आत्मबोध-अश्वनी

जीना झीना झीना....

मरना सघन सघन......

करना कुछ छ्लावा छ्लावा......

ना करना मगन मगन.....

पाना है इक प्यास....

ना पाना लगन लगन...

June 2, 2010

क्या-अश्वनी

क्या लिखें .......

क्या सुनाए.......

क्या करें बयां.........

इतने दिन बीते कह्ते कह्ते....

अब भी कुछ बाकी रहा है क्या.....

उदासी-अश्वनी

जब दिल उदास हो तो उदासी का मज़ा लो....

जब खुश हो दिल तो उदासी खोजने निकल पढ़ो...

उदासी स्थाई भाव बन जाए तो ऐसे विचार अक्सर आते जाते रह्ते हैं....

आप क्या कते हैं...

डगमग इरादे-अश्वनी

कैसे करें वादा .......

जब डगमग हो इरादा ....

जब डगमग हो इरादा तो कैसे करें वादा...

गुनाह अभी चंद कर लेने दो मुझको .....

कर लेंगे हिसाब भी इक दिन....

कम किये या ज़्यादा....

हालाते हाज़रा-अश्वनी

नींद बहुत आती है...
नींद नहीं आती है....
बात होंठों पे आती है...
बात दिल में रह जाती है...
समझ जाता हूं हर बात कभी....
कभी समझ ही नहीं आती है.....
याद, प्यास, तड़प, जुदाई, प्यार
ये सब सिर्फ शब्द हैं कभी.....
कभी-कभार शब्दों के भीतर बसी रूह नज़र आती है..

March 5, 2010

जिद्दी जिद्दी-अश्वनी

मेले लगे हैं...
मगर आज हम फिर से अकेले चलें हैं...
भीड़ से हटके चलने कि आदत पुरानी है...
अब इस आदत को जिद में बदलने चलें हैं

March 1, 2010

भ्रमित-अश्वनी

निकला था घर से
सोच के कुछ कि इधर जाऊंगा
उधर जाऊंगा
अभी आके जहां पहुंचा हूँ
समझ नहीं आता
कहाँ हूँ ...
किधर जाऊंगा
कभी मंजिल ने छला..
कभी रस्ता निकला मनचला
कभी पता चला
कभी नहीं
बहुत सोच समझ के यात्रा शुरू करो तो भटकने के चांसेस ज्यादा रहते हैं...
आप क्या कहते हैं??

चंद चिन्दियाँ-अश्वनी

आज फिर कुछ लिखने का मन है...
आज फिर दिल से अपने बातें कि जायेंगी...
आज फिर कोई नई बात लगेगी पता....
आज फिर मुझे देर से नींद आएगी।


आज सपने देखे जायेंगे कुछ हसीं
आज साथ चंदा सूरज खिलेंगे कहीं
आज बिन मौसम बारिश भी होगी
आज मस्त मोर,बस्ती में नाचेगा कहीं

January 28, 2010

एक अधूरी कविता-अश्वनी

उत्तेजना है कुछ ...कुछ ठंडापन है
जिज्ञासा है कहीं..कहीं तटस्थता भी है
निश्चिन्तता है कभी..कभी चिंतामगन हूँ
दूरदृष्टि प्राप्त होती कभी..कभी सब कुछ धुंधला धुंधला
अहसास होता हर आहट का कभी ...कभी कुंद पड़ जाती हर संवेदना