July 18, 2009

खुशबू-अश्वनी

मेरे अहसास साँस साँस साथ
जीवन चक्र का चक्का घूमे
धरती डोले आकाश चले पलकों तले
प्यास बुझे भड़के संग संग
दिल जले धड़के संग संग
रात शाम तड़के संग संग
संग संग इक रहने लगी हर पल संग संग
अंग अंग लग के अर्धांगिनी बनी
संग संग चल के बनी संगिनी
रंग रंग रंग के बनी रंगिनी
भोर की नमी अब रहती है थमी दोपहर तक
दोपहर की आंच रखता हूँ बांच शाम तक
शाम की लाली बन के हरियाली मिलती है रात को
रात का चाँद रहता है मांद भोर तक
रात शाम दोपहर भोर
इन सब के ओर छोर छाते हैं पोर पोर
फूटती है एक आभा नई
मेरे रंग खिल गए कई
सात रंगों में समा जाऊं ऐसा धनुष नही मैं इन्द्र का
मैं हूँ हज़ार रंग
बस रंगिनी संग